दर्द बरसात की बूंदों में बसा  करता है

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भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है दर्द बरसात की बूंदों में बसा करता है

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उसने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं भिगने वालो को कल क्या क्या परेशानी हुई                        

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टूट पड़ती थी घटाये जिनकी आंख देख कर वो भरी बरसात में तड़से है पानी के लिए

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कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए वरना जो मेरा दुःख था वो उम्र भर का था

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ओस से प्यास कहाँ बुझती है  मुसला धार बरस मेरी जान 

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है