परवीन शाकिर के चुनिंदा शेर
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ये क्या कि वो जब चाहे मुझे चिन ले मुझसे अपने लिए वो शक्स तड़पता भी तो देखूं
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वो अपनी एक जात में कुल कायनात था दुनिया के हर फरेब से मिलवा दिया मुझे
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तितलिया पकड़ने में दूर तक निकल जाना कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर
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वो नरम लहजे में कुछ तो कहे की लोट आये समां तो की जमीं पर फुवारा का मौसम
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बस ये हुआ की उसने तकल्लुफ़ से बात की और हमने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए
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